हुए थे । रिपाटे का वह अंश नीचे दिया जाता है। यह
शासकों की विचार-शैली के उस भोलेपन का नमूना है जो अपरिहार्य सत्य के सामने उन्हें मिथ्या विश्वासों का आश्रय ग्रहण
करने के लिये वाध्य करता है---
"किन्तु समूचे आन्दालन पर दृष्टिपात करने से यह नहीं कहा जा सकता कि वह निष्फल हुआ । इसके परिणाम वाञ्छनीय हुए हैं या अवांछनीय,यह समय बीतने पर ही मालूम हो जायगा, किन्तु इन परिणामो की वास्तविकता के सम्बन्ध में अब कोई शङ्का नहीं की जा सकती । जिन श्रेणियों के लोग पहले राजनीतिक विचारों के प्रति उदासीन थे उन्ही मे सन् १९२१ --२२ के गांधीजी के प्रबल आन्दोलन ने विदेशियों के प्रति जाति द्वेष से उत्पन्न विरोधात्मक देशभक्ति का दृढ़ भाव भर दिया है । नगर और ग्रामों की अल्पोन्नत श्रेणियों के लोग वर्तमान राजनीतिक परिस्थितिकी अनेक बाने समझने लगे हैं । सब बातों का ख्याल कर अभीतक असहयोग की सबसे भारी सफलता यही समझी जानी चाहिये । कई बातों में उससे लाभ होने की संभावना है, यह बहुतो की धारणा है; उसके कारण भविष्य में कुछ वर्षों तक भय तथा कठिनाइ यां बहुत बढ़ जायंगी, यह कम लोग अस्वीकार करेंगे ।"
उपरोक्त अवतरणसे यदि हम विशेषणों एवं विशेषता द्योतक शब्दोंको निकाल दें तो कामन्स सभा में अर्ल विण्टररन