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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/१२५

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द्वारा उपस्थित किये गये सरकारी वक्तव्य की अपेक्षा वह सत्य के अधिक निकट पहुंचा है ।

वायसराय की आशा तथा निराशा

सहायक भारत मन्त्री ने जिस प्रकार जबर्दस्ती ही आशावाद प्रगट करना चाहा था, उसी प्रकार का एक भाषण हाल में वाइसराय महोदयने भी बड़ी व्यवस्थापक सभाका उद्घाटन करते समय किया था। किन्तु जहां इस भाषण का प्रारम्भ विश्वासपूर्ण शब्दों में किया गया है वहां उसके अन्तिम भाग में किया गया अनुरोध निराशासे भरा हुआ है—

“यहां भारत में तो हम जानते हैं कि वे (असहयोगी) भारतीय जनताके वास्तविक विचारों के प्रदर्शक नहीं है किन्तु क्या आप लोगों को यह जान कर आश्चर्य होता है कि भारत की अधिकांश जनता के राजभक्त होते हुए भी उन लोगों ने समस्त साम्राज्य के अंग्रेजों पर बुरा प्रभाव उत्पन्न कर दिया?"

यहां पर यह अप्रिय प्रश्न किया जा सकता है कि भारत की अधिकांश जनता का अर्थ सर्वसाधारण नहीं तो और क्या है? किन्तु अपने भाषण के दूसरे अंश में वाइसराय ने अपने श्रोताओंको यह आदेश देना आवश्यक समझा कि आप लोग सर्व साधारणकी बुद्धि पर प्रभाव डाल कर उनकी सहानुभूति प्राप्त करनेकी चेष्टा कीजिये। उन्होंने यह भी कहा था—

"हमें उनको अपने उद्देश्य की सचाई का विश्वास दिलाना चाहिये, हमें उनको इस बात का निश्चय करा देना चाहिये कि