व्यकियोंने न अपना हो नाम उम्बल किया और न आन्दोलनको हो लाभ पहुंचाया, किन्तु इतना खोकार करते हुए भी कोई भी निष्पक्ष मनुष्य उन वीर और कार्य परायण मनुष्यों को पर्याप्त प्रशंसा किये बिना न रहेगा जो देशकी आवश्यकताके समय
परिणामों का ख्याल न कर हजारोंको संख्यामें सामने आये।
इनमें से अनेक भव भी जेल में हैं, बहुतेरे किसी कार्य विशेषके
अभावसे पुनः अपने पुराने कामोंमें लग गये हैं और बहुतेरे
अब भी बचे हुए हैं जो आवश्यकता होते ही आत्म त्यागके
लिये तुले बैठे हैं।
अस्पृश्यता ।
दक्षिण भारतमें तथा किसी अंश तक मध्य भारत और पश्चिम भारतके कुछ भागों में भी अस्पृश्यता खूब फेलो हुई है। दो चार स्थानोंको छोड़कर अन्यत्र भारतको उन्मल कीर्तिसे यह कलंक मिटा डालनेका कोई विशेष प्रयत्न नहीं हुआ। फिर भी धीरे धीरे मारे देश में वाछिन परिवर्तन हो रहा है। कठि- नाई यह है कि यह प्रश्न व्यहो धार्मिक विश्वासोंके साथ मिश्रित कर दिया गया है। खुशो इस बात को है कि मानसिक घृणा अब बिलकुल दूर हो गया है। अतः निराश होनेकी कोई बात नहीं है।
मदिरा-निषेधका यस ।
सन् १९२० और १९२१ में मदिरा निषेधका प्रयत्न देश भरमें जोरोंसे बलता रहा ।कई खानोंपर मदिराको दूकानोंपर पहरा भी बैठा.