उपस्थित होती कि कुछ लोग सत्यको खोजमे अहिंसाके पथ पर अटल रह कर अत्याचारी कानुनोंसे अपनी रक्षाका यत्न कर रहे हैं तो मैं उनका सहर्ष स्वागत करता और उनकी गणना न्याय- प्रेमियोकी सर्वोच्च कोटिमें करता और शासककी हैसियतसे मैं उन्हें अपना दाहिना हाथ बना लेता क्योकि उनकी सहायतासे मैं कभी सत्य और न्याय मार्ग से भ्रष्ट नही हो सकता था।
प्रश्न-पर प्रत्येक काननके विषयमे मतभेद हो सकता है कि यह उचित है कि अनुचित, संगत है या असंगत ?
उत्तर---यही कारण है कि सत्याग्रह सिद्धान्तमे हिंसाकी प्रवृत्तिको स्थान नहीं दिया गया है। सत्याग्रही अपने शत्रु ओर प्रतिद्वन्दीको भी उतनी ही म्वतन्त्रता देना चाहता है जितना आप भोगना चाहता है और इसीलिये वह आप कष्ट झेलना स्वीकार करता है पर दूसरोको कष्ट देना नहीं चाहता।
प्रश्न-मैं इसपर दूसरी दृष्टिसे विचार कर रहा हूँ अर्थात् शासनकी सार्थकताकी दष्टिसे। मैं यह देख रहा हूँ कि क्या ऐमी अवस्थामे किसी प्रकारका शासन चल सकता है जब वहांकी प्रजाका एक दल सरकारके सिद्धान्तों और मतोको न स्वीकार कर एक स्वतन्त्र दलको आज्ञाको माननेके लिये तैयार हो?
उत्तर-मेरा अनुभव तो आपके कहनेके एकदम प्रतिकूल है ।
दक्षिण अफ्रिकामें मैने यह संग्राम आठ वर्ष तक चलाया था
और मैंने देखा था कि शासनके कार्यमें इसके द्वारा किसी तरह-