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सत्याग्रहकी मीमांसा

प्रश्न--क्या आप इस आन्दोलनमें अधिकाधिक लोगोंका लाना चाहते थे।

उत्तर- हां, वहीं तक जहां तक सत्य और अहिसाके सिद्धा- न्तके अनुकूल था। यदि मेरी समझमें पूरे एक करोड़ आदमी इस सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तके अनुसार चलनेके योग्य हो जाते ता मैं विना किसी मोच विचारके सबको साथ लेनेको तैयार था।

प्रश्न-क्या यह आन्दालन सरकारकी मन्शाके एक दम विरुद्ध नही था, क्योकि आप सरकारकी आज्ञाके सामने सिर न झुकाकर सत्याग्रह कमेटोकी आज्ञाओका पालन करना चाहते थे।

उत्तर-इस आन्दोलनका इस रूपमे किसीने भी नहीं समझा था और न जनतान ही इसका यह अभिप्राय लगाया था।

प्रश्न-मेरा अनुगध है कि आप सरकारकी दृष्टिके अनुसार इस आन्दालनपर विचार करें। मान लीजिये कि आप किसी देशके शासक है और उस देशकी प्रजाने उसी तरहके कानूनोंको ताड़ने के लिये आन्दोलन उठाया जिस तरह के कानूनोंके तोड़नेकी राय आपकी सत्याग्रह कमेटी दे रही है। ऐसी अवस्थामें आप उस आन्दोलनको किस दृष्टिसे देखते ?

उत्तर-इस प्रकार सत्याग्रहके उच्च सिद्धान्तकी पूरी तरहसे मीमांसा नही हो सकता। आपके ही कथनानुसार यदि मैं किसी देशका शासक होता ओर यदि मेरे सामने ऐसी समस्या