लिये मेरी समझमें एक ऐसी कमेटीका होना नितान्त आव-
श्यक था और इसीलिये हमलोगोंने उस कमेटीको बनाया
ताकि कोई भी सत्याग्रही अपना कर्तव्य आप ही निर्धारित
न कर ले और इसीलिये हमलोगोंने कमेटीको यह अधिकार
दिया कि वह निश्चय करे कि कौन कानून तोडे जायं।
प्रश्न-एक ही बीमारीके निदानमे भिन्न भिन्न डाकृरोके भिन्न भिन्न मत होते है। क्या सत्याग्रहियोंमें उस तरहका मतभेद सम्भव नहीं है ?
उत्तर-आपका कहना सर्वथा सत्य है । मुझे भी यही अनु- भव हुआ।
प्रश्न-मान लीजिये कि कोई सत्याग्रही किसी एक कानूनको न्यायसंगत और उचित समझता है पर निर्धारिणी समिति उसे असंगत समझती है और उसकी अवज्ञाकी मन्त्रणा देती है , ऐसी अवस्थामें वह सत्याग्रही क्या करेगा?
उत्तर-यह आवश्यक नहीं है कि वह उस कानूनकी अवज्ञा करे। ऐसे अनेको सत्याग्रही हमारे साथ थे।
प्रश्न-क्या यह आन्दोलन भीषण नहीं है ?
उत्तर-यदि आप मेरा दृष्टिसे विचार करे और यह देखें कि इसका मुख्य लक्ष्य देश और जनतामेसे हिमाकी प्रवृत्ति दूरकर देनी है तो आप भी मेरी भांति इसके पूर्णसमर्थक और पक्षपाती हो जायेंगे। मेरी तो यही धारणा है कि किसी भी उपायसे इस आन्दोलनको परम पवित्र बनाये रखना चाहिये।