इस कथनमें मैंने जाति विशेष या देश विशेषके ख्यालसे कोई बात नहों कही है। क्योंकि सत्याग्रहीकी दृष्टिमें इस तरहके भेद- भाव कोई महत्व नहीं रखते या यों कहिये कि वह इस तरहके भेदभावसे सर्वथा रहित है। इस अवस्थामें सत्याग्रहीको वही हालत है जो किसी अभियुक्तके वकीलकी होती है। मुझे बड़े बड़े भयानक गुनहगारोंका नाम याद है जिनको मैंने अनेक पापा- चरणलसे हटाया है। मैं उनमेंसे एकका भी नाम नहीं बता सकता, क्योंकि ऐसा करना उनके प्रति घोर विश्वासघात करना है। मान लीजिये कि मै कुछ ऐसे लोगोंको जानता हूं जो भीषण गुनाह करनेवालोंमेसे है। मैं उनमें शामिल होकर उन्हें उस पापाचरणसे हटाना चाहता हूँ। कोशिश करनेपर भी मुझे सफलता न मिली। तो उस समय मेरा धर्म क्या होगा? क्या मुझे उचित है कि मैं जाकर पुलिसको सूचित करूं और उन्हें पकड़वा दूं। मुझे यह कहनेमें जरा भी सङ्कोच नहीं होता कि सत्याग्रहीका सच्चा धर्म यही है कि वह अदालतके सामने किसी भी अवस्थामे उन अभियागोके खिलाफगवाही देने न जाय जो उसकी आंखोंके सामने भी किये गये हो। पर इस सिद्धा- न्तका प्रयोग कठिन है ओर बहुत ही कम होना चाहिये क्योंकि मैं स्वयं निश्चय नहीं कर सकता कि यदि कोई व्यक्ति मेरे सामने गुनाह करते पकड़ा जाय तो उसके खिलाफ मैं गवाही देनेके लिये उद्यत होऊगा या नहीं।
प्रश्न-साधारणतया इस स्थितिके बारेमें आपकी क्या राय ,