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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२३५

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बीती ताहि बिहारियों दे, आगे की सुधि लेहु

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( नवम्बर ५,१६१६ )

पारसाल की घटनाओं का चिट्ठा उनारमा कठिन है । युद्ध समाप्त हो गया पर उससे कोई लाभ न हुआ। जिन आशा- ओंको वह सींच रहा था वे अब मुरझाने लगी हैं । जिस शान्तिको हम लाग स्थायी समझ रहे थे वह केवल नाममात्रको शान्ति निकली। जिस युद्धकी भीषणताकी तुलना महाभार- नसे को जा सकती है उसका अन्तिम परिणाम क्या निकला ? उसके अन्तिम परिणामको देखकर तो यही कहना पड़ता है कि यह युद्ध एक भीषण युद्धका आरम्भमात्र है। इस समय अमरीका, फ्रांस और इङ्गलैण्डम भीषण अशान्ति फैल रही है जिसकी कल्पनामात्रसे दिल दहल उठता है । जो कुछ हो रहा है वह एक पहेलीकी तरह है। भारतकं काने कानमे अस- लाष और निराशा झलक रहा है। सबको पूण विश्वास था कि युद्धके बाद भारतको कुछ उपयोगी ओर मारपूण वस्तु मिलेगी पर सब आशा निराशामें परिणत हो गई। जो कुछ हम लोगोंको विदित है उससे तो हम यही चाहते हैं कि शासन सुधारका काननीरूप न दिया जाय। पर यदि वे आमी गये तो सर्वथा बेकार होंगे। कांग्रेस लीग स्कीम, दिल्ली