“सत्य के मार्गका अनुसरण केवल साहसिक योद्धा ही कर
सकते हैं, दुर्वल आत्माओं की शक्तिके यह बाहर है ।"
स्वदेशीका व्रत सत्याग्रहका व्रत है । दुर्वल आत्माओमें इतना साहस कहाँ कि वे स्वदेशीका व्रत ग्रहण करे और उसका पालन करे। दुवल आत्माये हिन्दू मुसलमानोमें मेलका प्रचार भी नहीं कर सकतीं। यदि एक मुसलमान हिन्दू पर आघात करे या एक हिन्दू मुसलमानपर आघात करे तो उस तीव्र चोटको धैर्य पूर्वक बर्दाश्त कर लेना सहिष्णुताकी पराकाष्ठा है। क्या इसकी आशा दुर्वल आत्माओंसे की जा सकती है ? यदि इस नरहके सहिष्णुनाकं भाव हिन्दू और मुसलमान दोनों में आ जायं नो स्वराज्य चुटकी बजाते प्राप्त हो जा सकता है। सत्याग्रहके मार्गपर चलने में हमें कोई रोक टोक या विघ्र बाधा नहीं है। हमे कोई मना करनेवाला भी नहीं है । स्वदेशी और हिन्दू मुसलमानोंका मेल दानों बातें सत्याग्रहके अङ्ग है और धार्मिक हैं। भारतवर्ष धार्मिक देश है। इसलिये हमें पूर्ण आशा है कि इस धर्माचरणमें नारत दृढ़नासे डटा रहेगा और कभी भी पीछे कदम नहीं हटावेगा। इल नये साल के समारोहमे हमारी यही प्रार्थना है :---
"दयामय, इस पूण्य भूमिका सत्यका मार्ग दिखलाइये, इस
धर्मशील देशको स्वदेशीके धर्ममे दीक्षित कीजिये और भारत
माताकी प्रत्येक सन्तानको-चाहे वे हिन्दू हो, मुसलमान हों,
ईसाई हों, पारसो हों या यहूदी हों,---सबको सौजन्यता, प्रेम,
सदार और एकताके दृढ़ बन्धनमे बांध दीजिये ।"