( मार्च ३१ १९२० )
इस परम पवित्र राष्ट्रीय सप्ताहमें सर्व प्रथम और प्रधान करणीय काम उपवास और प्रार्थना है। राष्ट्रीय जीवनके विकासमें इसका कितना ऊंचा स्थान है इसके बारेमें हमने समय समयपर काफी लिखा है। इस सम्बन्धमें हमारा निजी अनुभव बहुत ही अधिक है। एक बार इसी विषय पर हम अपने एक मित्रको लिख रहे थे उस समय कवि टेनिसनकी कुछ कवितायें हमें स्मरण आ गईं जिन्हें उन्होंने प्रार्थनाके विषयमे लिखी हैं। आशा है कि इससे हमें महायता मिलेगी। इसीसे हम इसे उद्धृत कर देना उचित समझते हैं। टेनिसनने लिखा है :—
“संसार जितना समझता है उससे कहीं अधिक मनोरथ प्रार्थना द्वारा पूरा हो सकता है। इसलिये मनुष्यको निरन्तर उसी परब्रह्म परमात्मामें ध्यान लगाये रहना चाहिये। जो मनुष्य ईश्वरका अस्तित्व मान कर भी प्रार्थनाके लिये हाथ नहीं उठाते। उनका जीवन भेड़ बकरियोंके समान है क्योंकि बुद्धिकी उपयोगिताका ज्ञान उन्हें नहीं है। यह निखिल विश्व सोनेकी जजीरों द्वारा ईश्वरके चरणों में बंधा है।"
भारतमें दौरा करते समय हमें हर तरहके आदमियोंसे सह-