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सत्याग्रह आंदोलन


वास हुआ है। हमने जिस जोश और उत्साहसे उनके साथ राष्ट्रीय प्रश्नपर विचार किया है उसका वर्णन इस समय करना कठिन है। इससे हमें अनुभव हुआ कि अभी तक हमारी आत्मा इतनी ऊपर नहीं उठ सकी है कि हम अपनी राष्ट्रीय स्थितिका सञ्चा दिग्दर्शन कर सके। अभी तक हमलोगोंमे वह स्थिरता नहीं आई जिससे हम लोग उस स्थि. तिका दिग्दर्शन कर सके। हमारी समझमें इसका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करनेके लिये प्रार्थना और उपवाससे बढ़कर अन्य कोई भी साधन मौजद नही है । आत्मत्यागके भाव, दृढ़ता तथा नम्रताके भाव इसी तरह उत्पन्न होते है और बिना इनके उन्नतिका होना असम्भव है। इसलिये हमे पूर्ण आशा है कि इस देशके करोड़ों नर नारी इस सप्ताहका आरम्भ उपवास और ब्रतद्वारा ही करेंगे ।

इस सप्ताहमें हम सत्याग्रहर्क सविनय अवज्ञाके अश पर जार देना नहीं चाहते। हमे सत्य और अहिंसाका ही आवाहन करना चाहिय ओर उनकी सार्थकताका पर्यवेक्षण करना चाहिये। यदि हममें से प्रत्येक अपने जीवनको सत्य और अहिंसाके आधारपर चलावें तो हमारी समझमें फिर हमारे लिये सविनय अवज्ञा आदिकी कोई आवश्यकता नही रह जाती। सविनय अवज्ञाकी तभी आवश्यकता पड़ती है जब विरोधक सामने केवल कुछ ही लोग सत्य और अहिंसाके व्रतको स्वीकार करनेके लिये तैयार रहते है। सत्यको जानना अति कठिन है.