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सत्याग्रह आंदोलन
 


जाती है। संभव है कि इस सिद्धांत का वैयक्तिक अवलम्बन अभीष्ट फलदायक न हा। पर ऐसे सच्चे उदाहरणों में एक जबर्दस्त योग्यता सदा बढ़ते रहने की है। उनकी ख्याति बढ़ जाती है और उनकी तरफ अंगुली न उठाकर लोग उनकी प्रशंसा करते है। थारू सदृश महात्माओं ने ही अपनी आत्मा को कष्ट में डालकर दासताकी प्रथा को तोड़ा और उसका अन्त कर दिया। थोरूने लिखा था :- मुझे पक्का विश्वास है कि यदि एक हजार,एक सौ या दस ही आदमी जो कि गणना के योग्य हो, बल्कि यदि एक ही सच्चे हृदयवाला व्यक्ति जो इस मसाचस्टी राज्य में गुलाम रखना छोड़कर इस राज्य से संबंध त्याग दे और इसके दण्ड स्वरूप जेल जाना स्वीकार करें तो उसी दिन अमरीका से गुलामी उठ जायगो। चाहे कार्यारम्भ कितना भी नाण्य हा पर यदि वह सत्कार्य है तो उसका अस्तित्व स्थायी है।" आगे चलकर उमने पुनः लिखा है : -मैंने विचार कर देखा तो मुझे प्रतीत हुआ कि इस काम की सफलता के लिये राजकीय आज्ञाओं की अवज्ञा करने वाले को अर्थदण्ड न देकर जेल भेज देने से ही अधिक लाभ हो सकता है क्योकि यद्यपि दानो से एक ही अभिप्राय को सिद्धि होगी पर कुर्की से इतना लाभ नहीं होगा क्याकि जिसकी आत्मा इतनो उन्नत हो गई है उसके चित्तम धन के लिये इतनी प्रवल लिप्सा रही नहीं सकता। “यही कारण है कि हम मिस्टर पटेल और डाकृर कानूगा का इस बात की हादिक बधाई देते हैं कि उन्होंने उचित अवसर पर महत्व पूर्ण कार्य के लिये अपूर्व उदाहरण उपस्थित किया है।