जिन लोगों से हमें आज तक मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ है उनमें दुर्गादास अद्वानी सबसे उत्साही कार्यकर्ता प्रतीत हुए हैं। जिस समय हम १६१५ में भारत लौटकर आये थे हमारा उनके साथ प्रथम परिचय पत्रद्वारा हुआ था। जिस अवस्था में पत्र लिखा गया था उससे ही हमने उनकी आत्मा की उत्कृष्टता का पता पा लिया था। सिन्ध प्रदेश में वे बड़े ही उत्साही कार्यकर्ता रहे हैं और कई वर्ष तक अनवरत परिश्रम से कार्य किया है। अभी हाल में ही उन्हें एक वर्ष के लिये कड़ी सजा हुई है। अपील अदालत के फैसले पर हमसे मत मांगा गया है। हमारी समझमे फैसले में कोई दम नहीं है। अदालतने "पुनराह्वान” (न्यू काल्स) नामी परचे को विद्रोही मानने मे भारी भूल की है और इस अवसर पर अद्वानी को दोषी ठहराने के लिये उसने गवाहियों का पर्यवेक्षण करने में अतुल परिश्रम किया है। पर सम्भव है कि दुर्गादासके प्रति स्वाभाविक अनुराग के कारण हमी भूल कर रहे हों। पर जहां तक हमारा अनुमान है हम दृढ़ता से कह सकते हैं कि जेल से बचने के लिये वह झूठ बोलनेवालों में नहीं है। सम्भव है कि अपील अदालत ने जो अभिप्राय निकाला है गवाहियों से वही अभिप्राय निकलते हों।
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