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सत्याग्रह आन्दोलन

सच्चे सत्याग्रही और घनिष्ट मित्र के नाते हम इस दण्डाज्ञा पर न तो दुर्गादास के लिये खेद ही प्रगट कर सकते हैं और न उनके परिवार के साथ समवेदना ही प्रगट कर सकते हैं। दुर्गादास ने खब सोच समझकर सत्याग्रह का व्रत ग्रहण किया था। इस अवसर से लाभ उठा कर हम अपने पाठकों के सामने ऐसे मामलों के विषयमे अपना मत रखना चाहते हैं। मुकदमेवाजी में हम लोग असंख्य धन फूंक देते हैं। हम लोग जेल के नाम से हा शर्रा उठते है। हमारी पक्की धारणा और दृढ़ निश्चय है कि यदि न्यायालयों पर हम लोग इतना अधिक निर्भर करना छोड़ दें तो समाज की अवस्था इससे कही अधिक उन्नत हो जाय। अच्छे वकील को तलाश करना नितान्त अनुचित और निन्दनीय है। और यदि यही काम सार्वजनिक सम्पत्ति के सहारे किया जाय तो अक्षम्य है और यदि सत्याग्रही इस प्रकार मुकदमेवाजी मे अपव्यय करते हैं तो वह घोर पाप करते है। इमलिये हमें यह सुनकर मार्मिक वदना हुई कि दुर्गादास के मुकदमे की अपील की गयी थी। यदि हमने गुनाह किया है तो वीरों की भांति हमे उसे स्वीकार कर लेना चाहिये और उसके लिये जो उचित दण्ड हो उसे भोगने के लिये तैयार रहना चाहिये। यदि दोषी न होने पर भी हम पर दोष प्रमाणित होता है और हम जेल भेज दिये जायं तो यह हमारे लिये अप्र -तिष्ठा का कारण नहीं हो सकता। और यदि हम सञ्च सत्याग्रही हैं तो जेल जीवन- की यातनायें हमें किसी भी तरह भयभीत नहीं कर सकतीं।