व्यर्थकी लडाई लड़कर दरिद्र बन जाना हमारी दृष्टिमे बुद्धि-मानी नहीं है। राजनैतिक अभियोगके लिये किमा प्रकार की चिन्ता करना मनुष्यत्वके विरुद्ध है क्योंकि उसमें किसी तरहका अपमान नहीं।
पंजाबमें मैंने विदीर्णहृदय माताओंका अपने पुत्रोंके लिये जारजार रोते देखा है क्योकि उन्हें अकारण जेल दिया गया। हमें विदित था कि हम लाचार थे। पर उन्हें मान्त्वना देना कठिन कार्य था क्योंकि भूठी आशामें उन्हें बांधकर हम पापके भागी नहीं होना चाहते थे। उन्हें यह कहकर समझाना कि जो होना था सो हो गया, अवतो इसका प्रतीकार नही हा सकता --किसी तरह भी लाभदायक नहीं हो सकता था। इसलिये हम अति कठिन कार्य करनेकी चेष्टा कर रहे थे अर्थात् हम उन्हें पूर्ण-सत्याग्रही होकर इस बातका समझानेकी चेष्टा कर रहे थे कि जबतक हमलोग अपने वन्धुवान्धवों को इस तरहको गिरफ्तारी और राजनैतिक अभियोगपर आंसू बहाते रहेगे तबतक यह यन्त्रणा और भी कठिन होती जायगी। यह लिखने की आव.श्यकता न होगी कि हमारा अभिप्राय उस सजासे नहीं है जो वास्तवमें अपराधके लिये दी जाती है।