मैं पूर्ण आशा करता हूं कि सभी मत के लोग इसमें सम्मिलित होकर अपना अपना मत जानता के समक्ष उपस्थित करेंगे और उचित नीति निर्धारित करेंगे। मैं भी उसी बात की चेष्टा करूंगा कि लीग ऐसी नीतिपर चले जिससे कांग्रेस किसी दल विशेष-की संस्था न होकर राष्ट्रीय बनी रहे।
यहीं पर मैं कार्यक्रम के तरीके के बारे में दो शब्द कह देना उचित समझता हूं। मेरी धारणा है कि किसी देश के राष्ट्रीय जीवन में अन्तर्हित सत्य और अहिंसा का प्रचार किया जा सकता है। यद्यपि मैं लीगको सविनय अवज्ञाके कार्यक्रम को स्वीकार करने के लिये बाध्य न करूंगा तथापि मैं सत्य और अहिंसाके भावको धारण करनेके लिये लीग को अधिकाधिक दबाऊंगा। यह हमारे राष्ट्र का प्रधान अङ्ग होना चाहिये। ऐसी अवस्था में हमें सरकारी कार्रवाइयों से भय या सन्देह नहीं होगा। मैं इस बातपर अधिक जोर नहीं देना चाहता। मैं सब बातें समयके ही हाथों छोड देता हूं। वही इन प्रश्नों का निपटारा करेगा। इस समय न तो मैं अपने सिद्धान्तकी व्याख्या करना चाहता हूं न तो उसकी उपयोगिता का ही दिग्दर्शन कराना चाहता हूं। मैं केवल लीग के सदस्यों को अपने मत का बनाकर जिन सिद्धान्तों को मैंने लीग के सामने रखा है उसपर केवल उनका मत चाहता हूं।