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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२८२

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अंगरेज रमणीय की आशीष


मिलेगो वे उनके नाम की पूजा करेंगे । परमात्मा उन्हें तथा उनको धर्मपत्नी को आशीर्वाद दें, उन्हें चिरायु करें और आरोग्य तथा बल प्रदान करें जिससे वे इस युद्ध में शीघ्र ही जय.लाभ करें ।'

पाठकों के सम्मुख इस पत्रको उपस्थित करते हुए मुझे सङ्कोच हो रहा है । व्यक्ति-विषयक न होते हुए भी यह कितना व्यक्ति विषयक है । परन्तु मेरा खयाल है कि मैं अहङ्कार से लिप्त नही हूं । मैं समझता हूं कि मैं अपनी दुर्वलताओं को खूब जानता हूं । परन्तु मेरे हृदय में ईश्वर के, उसकी शक्ति के और उसके प्रेम के प्रति जो श्रद्धा है वह अटल है, आंवचल है । मैं तो उस जगत्कर्ता के हाथ का एक खिलौना मात्र हूँ । और, इसलिए, भगवद्गीता की भाषा मे कहूं तो, ये सब स्तुति-स्तोत्र उसी के चरणो में समपित करता हूँ । हां, मैं मानता हूं कि ऐसे आशीर्वचनों से शक्ति का संचार होता है । परन्तु इस पत्र को प्रकाशित करने में मेरा उद्देश यह है कि इससे प्रत्येक सच्चे असहयोगी को अपने अहिंसा के पथ में बढ़ते हुए उत्साह मिले और वनावटों लोग अपनी गलतियों से बाज आवें । यह एक सच्ची लड़ाई है---भयंकर सच्ची लड़ाई है । यद्यपि इसमे द्वेष करनेवाले लोग शामिल हैं तथापि इसका आधार द्वैष पर नही हैं । इस संग्राम की भित्ति तो शुद्ध और निर्मल प्रेमपर है । यदि अङ्गरेज-भाइयों के प्रति या उन लोगों के प्रति जो 'अन्धेनेव नीयमाना' यथान्धाः' की तरह नौकरशाहो के पिट्ठू