पर कुछ समय से पंजाब अपनी इस प्राचीन गौरव को भूल
गया सा प्रतीत होता है। उन ऋषियों की ये सन्ताने यद्यपि
रङ्गरूप में ऋषि सन्तान प्रतीत होती है पर ये उनकी शक्ति और
शिक्षा को या तो भूल गई या उसका उलटा मभिप्राय लगाया ।
इन अषियों ने कहा था:---"शक्ति विज्ञान से बढ़कर है । एक बलिष्ठ आदमी सैकड़ों वैज्ञानिकों के लिये पर्याप्त है। शक्ति के बलपर ही पृथ्वी, तेज, आकाश, पर्वत, देवता, मनुष्य, पशुपक्षी, कीड़े मकोड़े, तथा वनस्पतियां ठहरी हैं । इसलिये इसी की उपासना करनी चाहिये ।"
पंजाब शारीरिक शक्ति के सामने इस आत्मबलको भूल गया । वह इस बात को भूल गया कि ऋषियों ने शारीरिक बलपर जोर नहीं दिया था बल्कि आत्मबल पर । यह बल सब अवस्था में सभी स्थानों पर मनुष्य का सहायक हो सकता है पर यह अगोवर है, अगम्य है, अव्यक्त है। यह आत्मबल अतिशय लाभदायक है और पशुगल से यह एकदम भिन्न है। इसमें वह शक्ति है जिसके द्वारा वशिष्ठ ने विश्वामित्रपर विजय लाभ की थी। क्या पंजाब पश्चिमी जातियों के पशुबल की उपासना के संभ्रम में आसका होता ? पशुबल के दो विशिष्ट आकार है:---जुल्म और बुजदिली अर्थात् दुर्बलों को सताना और बलवानों से हरना । इसके एकदम प्रतिकूल आत्मबल में दुर्बलों की रक्षा और जालिमों से निर्भय रहनेका गुण है। इस संबंधमें उन्हीं अमरकीर्ति ऋषियों ने लिखा है कि दोनों में से पसन्द करने का अधिकार हमारे