यह शक किया गया था कि उसने अपनी दीवारपर खिलाफत. का पोस्टर चिपकाया था। दूसरे का नाम गुलाम मुहम्मद है। वह गल्लेका व्यापारी है। उसने भी वही बयान दिया है।
जिन नाटिसों के लिये उन्हें दण्ड दिया गया है वे भी उखाड
दी गई थी। पर थोड़ी ही देर बाद मि० मासेडन का विदित हुआ
कि उन्होंने भूल की है। उन्हें मालूम हुआ कि नोटिसों में कोई
बात गैरकानूनी नही थी और उन्हें कसूरके प्रसिद्ध वकील
महयूद्दीन ने चिपकवाया था। उन्होंने फौरन क्षमा मांगी और
बतौर हर जानाके कादिरबख्शको दश रुपये दिये। इसी बीचमे
मि० मार्सडन के बुलाने पर महात्माजी उनसे मिलने गये और
उम घटनापर वादविवाद हुआ। महात्माजी उसी दिन तीसरे
पहर कसूर निवासियों की एक महती समामें भाषण करनेवाले
थे। मि० मार्सडन ने महात्माजी से कहा कि आप खुली सभामे
इस यातकी सूचना दे दे कि हमने जल्दी में जो कुछ किया उसके
लिये हमे घार पश्चात्ताप है। महात्माजी ने उस सार्वजनिक सभामें
लोगोंको बतलाया कि किस खूबीके साथ मि० मार्सडनने अपने
अपराधके लिये क्षमा मांग ली है। उस सभामे प्रायः ३ हजार
पुरुष और तीनसे चार सौ तक स्त्रियां थी। x x x x
महात्माजीका विवरण
कसूर की उपरोक्त घटना के बारे में महात्माजी ने निम्नलिखित
शब्दों में लिखा है जिससे ट्रिब्यूनके संवाददाताका पत्र पूरी