। फरवरी १८, १९२० ।
इस बागको खरीदने में राष्ट्रको कुछ आपत्ति हो रही थी । पर पण्डित मदन मोहनजी मालवीय, स्वामी श्रद्धानन्दजी तथा पंजाब के अन्य नेताओं के प्रयास से यह समस्या अब हल हो गई । यदि ६ अप्रेल से लेकर तीन मास के भीतर कुल लागत मूल्य दे दी जाय तो यह बाग राष्ट्र की सम्पत्ति हो जायगा। इसका मूल्य ५,३६,०००) १० है। इतनी रकम तीन मासके भीतर ही भीतर बटोरनी है ।
इस सम्पत्तिको राष्ट्र के लिये खरीदना उचित है या अनुचित, इस प्रश्न पर विचार करना आवश्यक है, क्योंकि इस व्यववापर कुछ पढ़े लिखे समझदार लोगों ने मी इतराज किया है। कानपुर के म्मारक का स्मरण करके इस तरहके विचारपर आश्चर्य नहीं करना चाहिये। पर मैं यह कहने के लिये विवश हूं कि यदि बाग राष्ट्रके लिये खरीद न लिया जाय तो हमारे लिये यह घोर अपमानकी बात है। क्या हम किसी भी अवस्था में उन ५०० या इससे अधिक निर्दोषों की स्मृति को भूल सकते हैं जो विना कारण ही, बिना किसी अपराधके ही कीड़े मकोड़ों की तरह मार डाले गये। यदि वे जानकर राजीसे प्राण गंवाये होते, अपनी निर्दोषिताको जानकर यदि वे अपनी जगह पर अड़े रहते और बन्दूकों के निशानों को फूलका वार समझकर