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पंजाबकी दुर्घटना


सहते तो आज इतिहासमे उनकी गणना महात्माओ, वारों और त्यागियोंमें हुई होतो। पर जो कुछ हो इस दुर्घटनाका राष्ट्रीय महत्व किसी भी तरह कम नहीं हो सकता । राष्ट्रका जन्म इसी तरहकी घोर यातनाओं आर असीम कष्टोंके सहनसे होता है । इस राष्ट्रीयताके संग्राममें जिन लोगोने बिना किसो कारण अथवा दूसरोंके दोषसे अपने प्राण गंवाये या असीम कष्ट सहे, उनकी स्मृतिको यदि किसी भी प्रकार हम लाग चिरस्थायी नहीं बना सकते तो हमे राष्ट्र कहलानेका अधिकार नहीं है। जिस समय हमारे निर्दोष भाई असीम निर्दयताके माथ हलाल किये जा रहे थे हम लोग किसी भी प्रकार उनकी रक्षा नहीं कर सका। चाहे हम लोग बदला न लें. प्रतिहिंसाके भावको हृदयोंमे उदय होने दें पर यह कब सम्भव है कि हम लोग उनके स्मृति चिह्न का बना कर उनके वन्धुवान्धवों को यह न बता कि इन त्यागियों के साथ हमारी पूर्ण सहानुभूति है और संसार को भी बतला दें कि इनकी मृत्युको हम अपने प्रियतमको मृत्युसे कहीं अधिक समझते हैं । यदि राष्ट्रीय वन्धुत्वमे इतना भी भाव नहीं आ सकता तो फिर उसका क्या प्रयोजन है। भावी सन्ततिको हम अभीसे सचेत कर देना चाहते हैं कि स्वतन्त्रताके मार्गमें आगे बढ़ने के लिये हमें सदा इस तरह की ( जालयांवाला बाग मश) घटनाओंका सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये । बलभर इस तरहकी घटनाओंके निवारणको चेष्टा करेंगे, इन्हें लाने की चेष्टा न करेंगे पर यदि कहीं ये घटित हो गई तो हम इनका