पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३५

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जबता जागृत हो जाय तथा अपना सङ्गठन ठीक तरह से कर ले तो उदार चित्त वायसराय को शकि और :भी मजबूत हो सकती है और भारत में रहने वाले अंग्रेजों के आन्दोलन व्यर्थ हो सकते हैं। निदान कलकत्ता के इण्डियन एसोसियेशन. ने भारतीयों के स्वत्व और अधिकारों के लिये आन्दोलन जारी करने की इच्छा से कान्फरेंस की। इसका फल यह हुआ कि १८८४ से नेशनल लीग नामकी संस्था कलकत्सा में स्थापित हुई। इसी उद्देश्य से मद्रास में महाजन सभा की स्थापना की गई। और बम्बई की प्रेसीडन्सी असोसियेशन तथा पूनेको सार्वजनिक सभा अपने अपने केन्द्रों में जनता को जागृत करने की चेष्टा करने लगीं। पर लोगों ने इस बात की आवश्यकता देखी कि इन प्रान्तीय सङ्गठनों के कार्य सञ्चालनके लिये कोई केन्द्र समा अवश्य होनी चाहिये। अलन आक्रोषियन लमने इसकी चर्चा उस समयके बड़े लाट लार्ड डफरिन से की। लार्ड डफरिन ने उसका स्वागत किया। यदि डबल्यू० सी० बैनर्जी की बातें विश्वासनीय हैं तो उन्होंने कहा था कि लार्ड डफ- रिन ने मिस्टर ह्य मसे कहा कि, "इस देश में ऐसी एक भी संस्था नहीं है जो सरकारी कार्यवाहियों की आलोचना करे। समाचार पत्र यदि जनता के प्रतिनिधि हो तो भी विश्वासनीय नहीं है और अंग्रेज लोग इस बात को किसी भी उपायले नहीं जान पाते कि उनके कार्य सञ्चालन के विषय में भारतीयो का क्या मत है। इसलिये शासक तथा शासित दोनों के सामके लिये यह