आवश्यक है कि भारत के राजनीतिज्ञ समय समय पर एकत्रित होकर सरकार को बतलाया करें कि शासन व्यवस्था क्या दोष है तथा उसके सुधारका क्या उपाय है।" निदान१८८४में इस प्रकार के केन्द्र सभा की योजना की गई और १८८५ में इसकी पहली बैठक मद्रास में हुई। भारतीय राष्ट्र समाने अपनी पहली बैठक में ही सरकारी शासन की त्रुटियां दिखलाई और उनके सुधार के उपाय बतलाये। कुल मिलाकर उनकी चार मांगे थीं। (१) भारत मन्त्रीकी सभा उठा दो जाय। (२) व्यवस्थापक सभा का विस्तार तथा सुधार हो (३) भारतीय सिविल सविसकी परीक्षा केवल इङ्गलैंड में न होकर भारत तथा इङ्गलैंड में एक ही साथ हो। (४) सैनिक व्यय में कमी की जाय।
दूसरे तथा तीसरे वर्ष की बैठकने इन सुधारों का निश्चित रूप भी बता दिया। इन मांगों के अतिरिक कांग्रेस को कुछ और भी मांगें थीं जैसे, जूरी द्वारा विचार (इसका प्रयोग उस समय तक सभी जिलों में नहीं हो रहा था)। उस समय तक शेसन जजों तथा हाईकोर्ट के जजों के हाथ में यह अधिकार था कि यदि कोई व्यक्ति निर्दोष साबित होकर छोड़ दिया गया है तो उस फैसलं- को वे हटाकर उसे विचारार्थ पुन: उपस्थित कर सकते थे। कांग्रेस ने इस अधिकार को उठा देना चाहा, क्योंकि कांग्रेस के मतले फिर जूरियों के निर्णयका कोई मूल्य नहीं रह जाता था। तीसरी मांग यह थी कि इसलैंड की अदालत की भांति यहां भी अभियुक को यह अधिकार दे दिया जाय कि यदि वह चाहे तो