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पंजाबकी दुर्घटना


अवस्थामें अधिकसे अधिक सर्तकसे रहनेवाले न्यायपति भी विचलित हो जाते है। मनुष्य निमित सभी संस्थायें प्रायः करके साधारण अवस्थामे ही सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ होती हैं। असाधारण अवस्थामें उनमें भी दोष आ जाते हैं। फिर भला हमारी प्रिवी कौंसिल उन दोषोंसे किस तरह बरी रह सकती है ! यदि प्रिवी कौंसिलका निर्णय इसके प्रतिकूल अभियुक्तों के पक्षमें हुआ होता ता भारत सरकारक मत्थे घोर कलङ्क और हीनताका काला टीका लग जाता जिसको घोर प्रयत्न करनेपर भी वह बहुत कालतक नहीं मिटा सकती थी।

इसका गजनैतिक प्रभाव क्या पड़ा यह इस बातसं सहजमे ही समझमें आ जायगा। जिम समय इस फैसलेका समाचार लाहोरमें पहुचा, चारों ओर शोक छा गया। निराशाकी भीषण काली घटाने लोगोको इस तरह आवेष्ठित कर लिया कि अब जनताके हृदयोंमें इतना भा उत्साह नहीं रह गया कि वह देशके दुलारे, आंखोंके तारे लाला लाजपतरायजीके स्वागतके लिये खड़ी हों जो इतने दिनोंके बाद मातृभूमिकी गोदमें आ रहे थे। उनके स्वागतकी जितनी तैयारियां की गई थीं सब जहांकी तहां रह गई। इस निर्णय पर पहुंचकर सरकारने अपनी मर्यादा कहीं अधिक खो दी, क्योंकि सही या गलत जनताको यहो धारणा हो गई कि राजनीतिक तथा जाति पक्षपातके सामने ब्रिटिश राज्य न्यायको ताखपर रख देता है।

इस आपत्तिके निवारणका एक ही उपाय है। मानव