पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९५
अमृतसरकी अपील


परसे प्रजाका एकदमसे विश्वास उठ जायगा और प्रजा उसके साथ सहयोग करना छोड़ देगी। जो लोग मर गये वे तो अब लौट नहीं सकते, उनकी चर्चा करनी व्यर्थ है पर साथ ही यह भो असह्य है कि जो लाग विना किसी कारण जेलोंमें सड रहे है उन्हें अपनो निर्दोषिता प्रमाणित करनेके लिये अवसर नहीं दिया जा रहा है और ऐसे अदालतको स्थापना नहीं की जा रहा है जिसमें जनताका पूरा विश्वास हो।

__________

अमृतसरकी अपील।

______

(मार्च ३. १६२०)

प्रिवा कौंसिलने इन अपीलोंको खारिज कर दी। इनकी पैरवीके लिये मवसे सुयोग्य वकील नियुक्त किये गये पर सब बेकार था। प्रिवो कौंसिलने भी इस गैरकाननी कार्रवाईकी पीठ ठोंकी। अभियुक्तोंके वकील सर मीमनकी बहसपर जजों- का जो कटाक्ष होता रहा उमसे आशा थी कि प्रिवी कौंसिल न्याय करेगी और फैसला उलट जायगा पर हुमा कुछ उलटा ही। इतने पर भी मुझे किसी तरहका विस्मय नहीं हुआ। राजनैतिक अभियोगोंकी जहां तक हमने छानबीन की है उससे यही परिणाम निकलता है कि ऐसे मामलोंमें बड़ीसे बड़ी भदा- लत भी निरपेक्ष निर्णय नहीं कर पाती। ऐसी असाधारण