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क्षमादानकी विस्मृति

बाहती, यदि वह ब्रिटिश न्याय प्रियतामें भारतीयोंका विश्वास जमाये रखना चाहती है तो उसे कानूनको सूची में रोलट ऐकृको क्षण भरके लिये भी रहते नहीं देखना चाहिये और पंजाब की लज्जापूर्ण घटनाओंको भी उपेक्षाकी दृष्टिसे नहीं देखना चाहिये ।

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क्षमादान कि विस्मृति

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( मार्च १६, १९२१ )

एक सम्मानित मित्रने हमारे पास लिखा है:---जलियावाला बागकी दुर्घटना तथा पेटके बल रेंगनेकी घटनाको बारबार क्यों स्मरण कराया जाता है ? इसका उत्तर बहुत ही सहज है। क्षमाकर देनेके माने भूल जाना नहीं है। अगर हमने दुश्मनका अपना दोस्त समझ लिया और उससे स्नेह किया तो हमारी क्या प्रशंसा और श्रेय है ? यदि हम यह जानते हैं कि जिस व्यक्तिको हम प्रेम करते हैं वह प्रेमके योग्य नहीं है, हमारा दुश्मन है और तब भी हम प्रेम नही घटाते तो हमारी प्रशंसा उचित है। यद्यपि अपमानके प्रत्येक शब्द इस्लामके बयाई अलोको स्मरण थे, और यद्यपि वह अपने शत्रु के मुकाबिले कहीं बलिष्ठ थे पर उन्होंने उससे बदला नही लेना चाहा। भारत सर माइकल ओडाया तथा डायर सदृश अपराधियोंको