हैं। इसी कारण संकुचित सोमाके अतिरिक्त साधारण अंग्रेजों-को और किसी बातकी जानकारी नहीं रहती यद्यपि उनका विश्वास रहता है कि वे सभी बातोंकी पूर्ण जानकारी रखते हैं। इस प्रकार मिस्टर पेनिङ्गटनकी जानकारी भा अन्य अंग्रेजोंकी भांति स्वाभाविक है और इससे भी हम लोगोंको यही शिक्षा मिलती है कि हम अपने कारवारको अपने हाथमें सम्हाल लें। योग्यता काम करनेसे आप ही आ जायगी। यदि हम लोग इस प्रतीक्षामे बैठे रहे कि यह अंग्रेज जाति हमें शिक्षितकर योग्य बना देगी तो हम भारो भूलमें पड़े हैं, क्योंकि जिन लोगोंका स्वार्थ हम लोगोंको दबाकर रखनेमे ही सिद्ध होता है वह हम लोगोंको का उठानेकी चेष्टा करेगी? वह तो यथासाध्य अधो-नताके समय को बढ़ाती ही जायगी। अस्तु!
अब हमें मिस्टर पेनिङ्गटनके पत्रपर विचार करना चाहिये। मिस्टर पेनिङ्गटनने लिखा है -'किसीका भी पूर्णरूपसे बिचा नही किया गया, यह ठीक है। पर क्या इसके लिये जनता उत्तर-दायी है? जनता लगातार इस बातके लिये प्रार्थना और आन्दोलन करती आ रही है कि जिन अधिकारियोंका पञ्जाबकी दुर्घटनामें हाथ रहा है उनका निष्पक्ष विचार होना चाहिये।
आगे चलकर उन्होंने मेरी भाषाको तीव्रतापर कटाक्ष किया है। इसके विषयमें मुझे यही कहना है कि यदि सत्य कडुआ है तो मैं भाषाकी तीव्रताके अपराधको सहर्ष स्वीकार करता हूं क्योंकि मैं सत्यकी हत्या किये विना जेनरल