कि उस सभामें भनेक ऐसे थे जो हमारी सूचना के बारे में कुछ नहीं जानते थे ।
(११) उसने बिना चेतावनी दिये ही गोली चलाना आरम्भ कर दिया था और जब भीड़ छटने लगी, लोग इधर उधर भागने लगे तोभी वह गोली चलाता ही गया। जो लोग भाग रहे थे उनकी पीठोपर उसने निशाना लगाये ।
(१२) भीड प्रायः एक अहाते में बन्द थी ।
ये सब बातें स्वीकार कर ली गई है। ऐसी अवस्थामें में उस काण्डको करले आमके सिवा और क्या कह सकता। उसकी कार्रवाईको ‘समझ की भूल' नहीं कह सकता, बल्कि अकारण विपत्तिकी सम्भावनासे उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी ।
मिस्टर पेनिङ्गटनके नोट ( जो यहां पर नहीं दिये जा सके ) में भी उसी प्रकारकी अजानकारा भरी बाते हैं जिस तरहको उनके पत्र में है।
लार्ड कैनिङ्ग के शासनके समय जिन बातोंका वादा किया
गया था, कागजों पर लिख लिखकर जिन्हें सुनाया गया,
उनपर आचरण नहीं किया गया। एक सुषिचारक वाइसराय ने
कहा था---"ब्रिटिश सरकारने भारतीया से वादायें की पर के
चरितार्थ किये जानेके लिये नहीं थीं केवल सुननेके लिये और
कानोंको प्रसन्न करने के लिये । तबसे सैनिक व्यय में भीषण
बढ़ती हुई है ।"