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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३८

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भवस्था से होकर गुजरना पड़ता है। पहली अवस्था में लोग उसका उपहास करते हैं, (इतने पर भी कारबार को बन्द नहीं होते देख) लोग उसे गालियां देते हैं और अन्त (उसे डटे पाकर) उसकी मांग पूरी करते हैं। कांग्रेस के भला चाहने वाले मित्र सर चार्ल्स बैडलाने बड़े लाटके उक्त कथनके लिये कामन्ससभा के अपने एक भाषण में खुब डाटा भी था। इसके उत्तर में लार्ड डफरिन ने मिस्टर बेडलाके पास यह पत्र लिखा :-"मैंने कांग्रेस के विषय में कोई अन्यथा बात नहीं कही है। मैं कांग्रेस को विद्रोही नहीं कहता, मैं कांग्रेस के साथ पूर्ण सहानुभूति रखता हूँ और उसका आदर करता हूं और उसके सदस्यों का आदर और सन्मान करता हूं। मैं सिविल सर्विस में उस तरह के सुधार का सदासे पक्षपाती हूं जिससे भारतीयों को अधिकाधिक पद मिल सके। और जिस तरहके सुधारके लिये आप चेष्टा कर रहे हैं उस तरहके सुधार मैं भी प्रान्तीय व्यावसापक सभाओं के लिये चाहता हूं।"

कौंसिलोंका सुधार।

निदान लार्ड डफरिन ने कौंसिलों के सुधार का प्रश्न उठाया। इस पर उनकी कमेटी ने सिफारिश किया कि कौंसिल के प्रत्येक कागज पोंको मच्छो तरहसे देखना चाहिये और सभी माम. 'लोंपर खली बहस करना चाहिये और बजटका अन्दाजा एक सायी कमेटी द्वारा किया जाना चाहिये और आवश्यक प्रतीत