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( सितम्बर १, १९२० )
बड़े लाटकी योग्यता और नेक नियतीपरसे मेरा विश्वास उठ गया। मुझे यह दृढ़ हो गया कि बड़े लाटमें भारत के शासनकी जिम्मेदारीकी योग्यता नहीं रही। इसलिये उनके भाषणको मैं शंकित चित्तसे पढ़ता हूं। व्यवस्थापक सभाके प्रारम्भ करते समय बड़े लाटने जो भाषण किया उसे पढ़कर उनके आन्तरिक भाव प्रत्यक्ष हो जाते हैं और उस अवस्थामे किसी भी अत्माभिमानीके लिये उनकी सरकारके साथ सहयोग करना असम्भव है।
पंजाबकी दुर्घटनाके संबंधमें उन्होंने जो शब्द कहे है उनसे प्रत्यक्ष है कि उसके प्रतीकारके उनके हृदयमें किसी तरहके विचार नही हैं और उन्होंने प्रतीकार करनेसे इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा है :---"हमें अपना ध्यान निकट भविष्य-की आर आकृष्ट करना चाहिये।" हमारी समझमें निकट भविष्यमे हम लोगोंका सबसे प्रधान कत्तव्य यही है कि हम सरकारको मजबूर करें कि वह पंजाबकी दुर्घटनाके लिये खेद और पश्चात्ताप प्रगट करे। पर भारत सरकारके भावमें इसका कहीं भी आभास नहीं है। उलटे बड़े लाट साहब अपने समालोचकोंको प्रत्युत्तर देनेकी बलवती इच्छाको बलात् रोक रहे हैं। इससे यह अभि-