पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३८५

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चोटपर चोट

घबराकर उन्हें अपनी रक्षाके लिये किसी किले या दुर्गकी आवश्यकता प्रतीत हुई। क्या मूसा पैगम्बरके अनुयायियों और यहूदियोंका धर्म पूर्णरूपसे सुरक्षित नहीं है। पर असल बात तो यह है कि अंग्रेज जाति भारतमें करोड़ों हिन्दू और मुसलमानोंको स्वतन्त्र नहीं देख सकती और न इनके साथ इस तरह रहनेके लिये ही तैयार है। दूसरी ओर भारतवासी हिन्दू और मुसलमान भी अंग्रजोंको इसलिये कोई विशेष अधिकार नहीं देना चाहते कि उनके अधिकारमें सभी अस्त्र और शस्त्र है जिन्हें मानव बुद्धिने बनाया है। हम भारतीयोंके पास एकमात्र उपाय यही है कि प्रतिरोध द्वारा उनसे डरना छोड़कर उनके असरको एक दम शून्य कर दें। चाहे इसे कोई उदण्डता या स्वप्न की बातें कहे पर मुझे पक्का विश्वास है कि लार्ड रेडिङ्गको शीघ्र विदित हो जायगा कि मैने भारतवासियोंके हृदयकी बातें कही हैं और जितना ही शीघ्र इस बातकी सत्यताको समझ लिया जायगा उतना ही शीघ्र अंग्रेजों और भारतीयों में सहयोग सम्भव है। मैं इस तरहके सहयोगके लिये सबसे अधिक उत्सुक हूं और यही कारण है कि मैं सहयोगके लिये उन अवसरोंसे लाभ उठाना नहीं चाहता जो मेरे सामने प्रलोभनके रूपमें आते हैं। असहयोग अक्षता अथवा दुषसे नहीं उत्पन्न होता, बल्कि सहयोगके लिये यह सबसे उपकारी शस्त्र है और इसलिये इसका जन्म ज्ञान और प्रेमसे होता है।

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