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पंजाबकी दुर्घटना


जायगा भारत सरकारके इस मेनुएलसे उन लोगोंको कभी भी सन्तोष नहीं होगा जो ब्रिटिश पार्लिमेंटको ऐसे कानन बना देनेके लिये दबा रहे हैं जिसके द्वारा भारतीयोंके नागरिक अधिकारको रक्षा हो सके, क्योंकि रौलट ऐक ओर नागरिक अधिकार दोनों विरोधी बाते हैं और एक साथही दोनों काननकी सूचीमें नही रह सकते । नागरिक अधिकारकी घोषणा कानूनन हम लोगोंके अधिकारकी सत्ता स्वीकार करती हैं और रौलट ऐक उसके नाशके लिये बनाया गया है।

क्या इस घोषणासे हमारी स्वतन्त्रताकी रक्षा हो सकेगी ? में अधिकारकी घोषणाका महत्व स्वीकार करता हूं पर जिस नरहसे यह निस्पन्न किया जा रहा है उसके मायाजालमें मैं फंसनेवाला नहीं हूं। यदि उसपर आचरण करनेके लिये मजबूर करनेकी हमारे हाथमें ताकत नहीं है तो इस तरहकी घोषणाका हमें कुछ भी लाभ नहीं है। जब तक कि हम साहसी और निर्भीक न हा जायं किसी तरहके अधिकारकी घोषणा हमे स्वतन्त्रता नहीं प्रदान कर सकती। यह हो सकता है कि काननोंका निर्माण इतनी तेजीके माथ हो कि वह शासन व्यवस्थाके कही आगे बढ़ जाय। ब्रिटनका इतिहास प्रमाण है। अपने कानूनों और शासन व्यवस्थामें समता लानेमें अग्रेजोंको प्रायः ५०० वर्ष लगे। मगना कार्टा ( १२१५ ) पेटिशन आफ राइटस (१६२८) ग्राण्ड रिमांस्टेंस (१३४१ ) बिल आफ राइट्स- (१६८६ ) आदि कानून अंग्रेजोंके ५०० वर्ष की लगातार उन्नतिके