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रबीन्द्रनाथ ठाकुर का संदेश


है वे अपने मनपर प्रतिहिंसा और क्रोधके भावके बोझ लाद दें पर हमें अपनी भावी सन्ततिके सामने वही स्मारक रखना चाहिये जिसकी हम उपासना कर सकते हैं, अर्थात् हमें अपने पूर्वजोंका अतिशय अनुगृहीत होना चाहिये जिन्होंने हमारे लिये बुद्धका आदर्श रख दिया है जिसने आत्माको जीता, क्षमाकी शिक्षा दी और प्रेमका साम्राज्य स्थापित किया।