हृदयमें बदलेके दूषित भावको जन्म देकर हम अपनी आत्माकी
कलंकित नहीं करेंगे और न अपने चरित्र बलका पतन करेंगे
और न हम भयसे घबरायेगें। वह समय आगया है जब न्याय
और सत्यताके इजलासमें दुबलों और विजितोंकी डिग्री होगी।
जिस समय भाई अपने भाईका खून करके प्रसन्न होता है और उसके लिये अपनी बहादुरी तथा वीरताकी डींग मारता है, जब वह अपने क्रोधकी सिनाख्त रखनेके लिये उसके रक्तके दागको भूमि पर कायम रखना चाहता है उस समय ईश्वर मारे शर्मके उस धब्बेको अपनी उदार छायाके नीचे छिपा लेता है। आइये! हम लोग भी जिनके घरों में खनकी नदियां बहाई गईं हैं, निर्दोषों के प्राण लिये गये हैं, उसी परमात्माकी उदारताको स्मरण करके इस रक्तके काले धब्बेका अपनी प्रार्थनारूपी चद्दरसे ढंक दें:-
रुद्र ! यत्ते दक्षिणम् मुखम् तेन माम् पाहि नित्यम् । अर्थात् हे रुद्र ! अपनी असीम कृपासे हम लोगोंकी सदी रक्षा करता रह।
सच्ची कृपाकी वर्षा वही रुद्ध करता है जो भयकी प्रखर
ज्वालामें वेदना और मृत्यु के भयसे हमारी आत्माकी रक्षा करता
है और यदि हमारे ऊपर कोई अत्याचार करता है तो उसके
लिये प्रतिहिंसाके भावसे हमारी रक्षा करता है। इसलिये हमें
उससे शिक्षा लेनी चाहिये, यद्यपि अपमानके घाव अभी तक ताजे
हैं। जो लोग अपने मनको दूषित और कलंकित रखना चाहते