इतनी जल्दी मिलो है। अब पानी आनेके पहले उसे रोकनेका प्रबन्ध न किया तो फिर मेरी इतिहासाता किस काम की? फिर मेरा सम्राट होना व्यर्थ है। नारदने कहा-यह तो तेरी विनाश काले विपरीत बुद्धिः' है। मैं जो कह रहा हूं यह इतिहासका सिद्धान्त नहीं है। यह तो धर्मका सिद्धान्त है। यह तो सनातन सत्य है। वसुदेव और देवकीके आठ अपत्योंमेंसे एकके हाथ तेरा विनाश-मरण निश्चित है। बस, तेरे लिये तो एक हो उपाय बच रहा है। अब भी पश्चात्ताप कर और श्रीहरिकी शरण जा। अभिमानो कंसने तिरस्कारकी हंसी हंसकर जवाब दिया-“सम्राट समरभूमिमें पराजय पानेपर ही पश्चात्ताप करते हैं।" नारद 'तथास्तु' कहकर चल दिये। कंसने विचार किया, दूसरे मम्राटोंको जो अभीतक विजय न मिलो इसका कारण था उन्हींकी गफलत। उन्होंने यह अच्छी तरह नहीं समझा था कि पूरी तरह सावधान किस तरह रहना चाहिये। अगर मैं भी उन्होंकी तरह गाफिल रहूं तो मुझे भी शिकस्त खानी पड़ेगी। पर इसकी कोई परवा नहीं। वीर लोग तो हमेशा जयके लिये 'प्रयत्न करते हैं और मौका पड़नेपर पराजयके लिये भी तैयार
रहते हैं। मैं हारा तोभी वह काई बुरी बात नहीं है। पर धर्मके डरसे हार खाना ता नामर्दी है। धर्मका साम्राज्य तो साधु, संत वैरागो ओर पुजारी ब्राह्मणोंके लिये ही मुबारक हो। मैं तो सम्राट हूं। मैं केवल शक्तिको ही जानता हूं।
कंसने बड़ी निर्दयताके साथ वसुदेवके सात नन्हें बच्चोंका