पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४२
खिलाफतकी समस्या


रहने दो। मैं अपने पुरुषार्थ, अपने बुद्धिबल, और बाहुबलसे तुम्हारे सिद्धान्तोंको असत्य सिद्ध कर दूंगा।” कालयवन कहता -"मेरा तो एक ही अर्थशास्त्र है। दूसरे देशों को चूसकर उनका धन लट लाना हो धनवान होनेका सबसे सीधा, सबसे सरल और इसीलिये प्रशस्त मार्ग है।” शिशुपाल कहता-"न्याय अन्याय-की बात तो प्रजाके आपसी झगडोंमें मानी जा सकती है। हम तो सम्राट ठहरे । हमारी तो जाति ही दूसरी है। राज्य प्रतिष्ठा, राज्यका गौरव, यही हमारा धर्म है।" कोरवेश्वर कहता- "संसारमें जितने रत्न हैं उन सबके वारिस हमी हैं। वह सब हमारे अधिकारमें आने चाहिये। 'यतो रत्नभुजो वयम्'। (क्योंकि हम तो रत्न भोगी ठहरे, रत्नोंका उपभोग करनेके लिये ही तो हम पैदा हुए हैं।) दुनियामें जितने तालाब है सब हमारे बिहार करनेके लिये बनाये गये हैं। विना युद्ध किये किसीको सुईकी नोकके बराबर भी भूमि न देंगे।"

पक्षपात शून्य नारदने कंसका चेताया भी था कि-"अरे तू बाहरके शत्रुओंको भले हो जोत सका हागा। पर तेरा सबसे जबरदस्त शत्र तो तेरे साम्राज्यमे ही साम्राज्य क्या घरमें ही- पैदा होगा। जिस सगी बहन तू दासाका तरह बर्ताव करता है उसीके पुत्रके हाथों तेरा नाश हागा, क्योंकि वह धर्मात्मा होगा। उसका तेजोबध करने के लिये जितने प्रयत्न तू करेगा उन सबका उपयोग उसके अनुकूल ही होता जायगा।

कंसने सोचा (Forewarned is forthrm .d) चेतावनी