पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४०२

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खिलाफतकी तिथि

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(अक्तूबर २२, १९१९)

भारतवर्षके इतिहास में १७वीं अक्त बर चिरस्मरणीय रहेगी। इतना भारी समारोह विना किसी उपद्रव और अशान्तिके बीत गया, यह स्मरणकर हृदय उत्फुल्ल हो जाता है, संचालकों की प्रशंसा किये विना नहीं रह जाता और सत्याग्रहकी विजयपर एक पताका और फहराने लगती है। लोग धीरे धीरे इस बातको समझाने लग गये हैं कि किसी बड़ी बातको हासिल करनेके लिये हिंसा उतनी लाभदायक नहीं हो सकती जितनी अहिंसा और शान्ति। जिस समय सरकारको यह भलीभांति विदित हो जायगा कि लोग उसके सैन्यबलकी परवा नहीं करते, उससे डरते नहीं, उसी समय उसे अपनी सेना निरर्थक और निष्प्रयोजन प्रतीत होने लगेगी। सैन्यबलके भयसे वे ही लोग बरी हो सकते हैं जो लोग उसका प्रयोग स्वयं अपने लिये नहीं कर सकते। अधिकार सम्पन्न लोग प्रजाकी ओरसे थोडी बहुत हिंसा चाहते हैं। सरकारको सारी चतुरता इसोमे भरी है कि वह तुरन्त बलप्रयोगसे जनताके दमनका प्रबन्ध कर देती है। सरकारकी उपयोगिता तभीतक समझी जाती है जबतक वह अपना कार्य प्रजाकी राय और अनुमतिसे चलाती है। पर