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खिलाफतकी तिथि


यदि खिलाफत के प्रश्नपर न्याय से विचार नहीं किया गया और मुसलमानों की धार्मिक स्पर्धा के अनुसार निर्णय नहीं किया गया तो मुसलमान लोग विजयोत्सव में कभी भी भाग न लेंगे। यह बहुत उचित है। पर यदि यह सर्वसाधारणका मत है तो इस पर पूर्णशक्ति के साथ जोर देना चाहिये न कि दबी जवान में इधर उधर से दो चार शब्द निकल आने चाहिये ।

कितनों ने वहिष्कार का प्रश्न भी उठाया था। इस विषयमें हमने अपना दृढमत प्रगट कर दिया है। वहिष्कारमें हमारा विश्वास नहीं है क्योंकि इससे असद्भाव उत्पन्न होता है और इसका असर भी बहुत अच्छा नहीं होता। जिन्हें सरकार के वहिष्कारका साहस नहीं है वेही ब्रिटिश मालके वहिष्कारकी योजना करेंगे। यदि सरकार के वहिष्कार की योजना की जाय तो हम उसके समर्थनमें कभी भी पीछे न रहेंगे पर वहिष्कार से राजविद्रोह टपकता है। राजभक्ति कोईbहृढ़ पदार्थ नहीं है। यह आपस का समझौता है। जो सरकार प्रजा के अनुरक्त है वह स्वभावतः प्रजा में राजभक्ति को पूर्णता देखेगी। यदि हमारी सरकार हमसे विरक्त हो जाती है अर्थात्ज ब वह बदनियत और जालिम हो जाती है तो विना किसी सोच विचारके हमें उसकी राजभकिसे मुह मोड़ लेना चाहिये और उसके साथ हर तरहके सहयोगसे हाथ हटा लेना चाहिये और दूसरोको भी ऐसा ही करनेकी मन्त्रणा देनी चाहिये । यदि आवश्यकता प्रतीत हो तो हमें इसी तरहके वहिष्कारकी योजना