सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५१
खिलाफत कांफरेंस

इसमें कोई आश्चर्य:की बात नहीं कि उस प्रश्न में---जिसका फलाफल केवल मुसलमानों के स्वार्थ के लिये है---हिन्दु भी मुसलमानों के साथ कन्धामें कन्धा लगाये खड़े हैं। मित्रताकी सच्ची पहचान विपत्ति है। जो मित्र विपत्ति के समय काम नहीं आया यह मित्र किस बातके लिये है ? इसलिये यदि हम भारतवर्षके हिन्दू, मुसलमान, पारसी जैन, ईसाई, बुद्ध एक राष्ट्रीयता को शृङ्खला में बंधकर रहना चाहते हैं तो हमें प्रत्येक के स्वार्थ को सार्वजनिक रूप देना होगा, प्रत्येक के स्वार्थ को अपना समझना होगा । इसके लिये केवल एक कसौटी होगी और वह यह कि अमुक की मांग न्यायोचित है या नहीं। मुसलमानों की मांग न्याय संगत है इसके साक्षी ब्रिटन के प्रधानमन्त्री और पुराने सरकारी कर्मचारियों का दल है। हम लोग हिन्दू मुसलमानों को एकताकी बात करते हैं। पर यह मैत्री केवल दिखौआ मैत्री होगी, इसके भीतर पोल या खोखलापन होगा यदि हिन्दू लोग मुसलमानों के संकट के समय किनारा कसकर उनसे अलग हो जायंगे । कुछ लोगों का कहना है कि हम मुसलमानों का साथ कुछ शर्तों पर दे सकते हैं । शर्त लगी हुई सहायता बनावटी सिमेण्ट मिट्टो-की तरह होती है जो मजबूती से जम नहीं सकता और जल्दी हो उखड़ जाती है। इसलिये केवलमात्र प्रश्न यह उपस्थित होता है कि सहायताका क्या रूप होना चाहिये । खिलाफत कांफरेन्स ने निर्णय किया है कि आगामी विजय उत्सवमें मुसलमान लोग