पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४१३

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खिलाफत

नहीं चल सकता। एक बात और है। उस सौजन्यताकी ओटमें तुर्कोको दण्ड देनेकी ढ़ता झलक रही थी। पर यह एक ऐसी घटना है जिसे मुसलमान स्वीकार करनेके लिये तैयार नहीं हैं। युद्धसे जो परिणाम निकला है उसका श्रेय मुसलमान सैनि-कोंको भी सबके बराबर है। जिस समय तुकोंने जर्मनीका साथ देना निश्चय कर लिया उस समय इन्हीं भारतीय मुसलमान सैनिकोंको प्रसन्न करनेके लिये उस समयके प्रधान मन्त्री मिस्टर आस्विथने कहा था :-“ब्रिटिश सरकार तुकीके साथ किसी तरहका मनोमालिन्य नहीं रखती और तुर्कीको कमेटीके इस निर्णयके लिये वह सुल्तानको किसी तरहका दण्ड नहीं देगी।'इस वचनके आधार पर बड़े लाटके उत्तरकी परीक्षा करनेसे उसे केवल असन्तोष जनक और निराशापूर्ण ही नही कहेंगे बल्कि सचाई और न्यायसे रहित भी कहेंगे।

ब्रिटिश साम्राज्य किससे बना है ? इसमें ईसाईयोंका जितना हक है हिन्दू और मुसलमानोंका भी उतना ही हक है। यदि वह प्रजाकी धार्मिक आस्थाके प्रति उदासीनता दिखलाता है तो यह उसका गुण नहीं कह सकते क्योंकि ऐसा न करनेके लिये वह वाध्य है और इसके अतिरिक्त उसे कोई भी उपाय नहीं है जिससे साम्राज्यका संगठन ढूढ़तर रह सके। इसलिये मुसलमानोंके स्वत्वोंकी रक्षाका भार ब्रिटिश मन्त्रियोंके ऊपर उतना ही है जितना अन्य किसीका। अथवा मुसलमान प्रतिनिधियोंके शब्दोंमें कि ब्रिटिश मन्त्रियों को इस प्रश्नको अपना समझकर उठाना होगा। यदि मुसलमानोंकी