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तुर्कीका प्रश्र्न


निवासी स्वतन्त्र होना चाहते हैं तो उन्हें होमरूल दे दिया जाय पर उनपर अधिकार तुर्कोका रहे। मुसलमानोंकी मांग इससे बढ़कर न्यायपूर्ण नहीं हो सकती। इस मांगके साथ न्याय है, ब्रिटिश प्रधानमन्त्रीकी घोषणा है और समस्त हिन्दू तथा मुसलमानोंका मत है। जिस हकका प्रतिपादन इतने बल पर किया जा रहा है, उसे स्वीकार न करना या उसमें किसी तरहका मीन मेष लगाना भारी भूल होगी ।

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तुर्कीका प्रश्न

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( फरवरी २०, १९२० )

मुसलमान नेतागण पूर्ण धैर्य और शान्ति पर पूर्ण योग्यताके साथ अपने मांगोंके याथातथ्य अर्थात् औचित्य और न्याय- पूर्णता पर बराबर जोर देते आये हैं। उन्होंने भली भांति दिखला दिया है कि मुसलमानोंकी मांगें सर्वथा न्यायपूर्ण और उचित हैं तथा उनके लिये मुसलमान हर तरहके त्यागके लिये तैयार हैं। न्याय, राजनीतिक दूरदर्शिता तथा भान्तरिक प्रेरणा तीनों उनके पक्षमें है। दुसरे दलके कुछ लोग आत्मनिर्णयकी बातोंको तथा उसके सिद्धान्तोंको हवामें उड़ाकर तुर्कीके किये पुराने कामोंका उद्धाटन कर रहे हैं ? पर इस कार्रवाईका भी