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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४३०

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खिलाफतकी समस्या


चारमें पड़ जाते हैं और भ्रमात्मक भावों को अपने हृदय में भर लेते हैं। हमारे मित्रने अपने उपरोक्त पत्रमें टाइम्सके जिस पत्रका हवाला दिया है उसे मैंने नहीं पढ़ा है। पर इनके पत्रसे विदित हुआ है कि टाइम्सके पत्रसे उनके हृदयमें इस बातकी आशङ्का उत्पन्न हो गई है कि मैंने अराजकताको और भी पुष्ट करनेके निमित्त एक तर्फी निर्णय किया है।

मेरे मित्रका लिखना किसो अंशमें उचित है। वास्तवमें सच यही है कि आत्माको प्रेरणासे ही मैंने खिलाफत आन्दोलनको अपना प्रधान अङ्ग कर लिया है और मुसलमानोंके साथ दिल मिलाया है। मेरे मित्रकी यह आशंका निर्मूल नहीं है कि मैं हिन्दू तथा मुसलमानोंमें मेल कराकर सद्भाव पैदा करने का यत्न कर रहा हूं । पर मेरा यह कहनेका अभिप्राय नहीं हैं कि तुर्की साम्राज्यके छिन्न भिन्नकर देनेके हेतु मैं ब्रिटिश सरकार अथवा मित्र राष्ट्रोंको किसी तरहसे त करू। सरकार या किसी अन्य शक्तिको तङ्ग करना मेरे सिद्धान्तके सर्वथा प्रतिकूल है। पर मेरे उपरोक्त कथनका यह अभिप्राय नहीं है कि हमारे चन्द कामोंसे सरकार तङ्ग नहीं आ सकती ( यह हो सकता है कि हमारे कुछ कामोंसे सरकार तङ्ग आ जाय, उसके हाथ पांव बंध जार्य पर मैं इस बातकी चेष्टा कभी नहीं करता।) यदि इस प्रकारसे सरकारके काममें किसी तरहकी वाधा पड़े तो मैं उसके लिये पश्चात्ताप नहीं करता। यदि कोई व्यक्ति बुरा काम या पापाचरण कर रहा है