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मैने खिलाफतका साथ क्यों दिया


जैसो मैं समझता हूं वह न्यायपूर्ण है और धर्मग्रन्थसे उसका प्रतिपादन होता है तो जो हिन्दू इस धर्मके काममें अपने मुसलमान भाइयोंकी सहायता न करेंगे वे भीरुताके कारण इस विरादराना सम्बन्ध पर चोट पहुंचानेके दोषो समझ जायंगे और मसलमानोंकी निगाह तथा चित्रसे गिर जायंगे। इसलिये इतने अटल विश्वासके बाद भी यदि मैं मुसलमानोंके उचित काममें सञ्ची सहानुभूति दिखलाकर उनके इस धर्म कार्यमें योग न दू तो मैं अपने नामके योग्य नहीं रह सकता और आवजनिक सेवाका भाव हमें अपने मनमेसे उठा देना होगा। मेरा विश्वास है कि उनकी सेवाकर मैं साम्राज्यकी सेवा कर रहा हूं क्योंकि अपने भादोंको नियन्त्रित रूपसे प्रगट करनेकी यन्त्रणा देकर और उस काममें उनकी सहायता करके मैं इस खिलाफत आन्दोलनको हिंसा रहित और सफल बनानेका यत्न कर रहा हूं।