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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४३४

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खिलाफत

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( मई १२, १९२० )

"जैसा कि मैंने अपने पिछले पत्रमें लिखा था मेरी समझ में मिस्टर गांधी ने खिलाफत के प्रश्नपर विकट भूल की है। उनकी मांग का आधार यह है कि उनके धर्म के अनुसार अरेबियापर तुर्को का शासन होना चाहिये । पर जब स्वयम् अरबके निवासी ही इस बात के विरोधी हो रहे हैं तो यह मान लेना असम्भव है कि मुसलमानों का कथन इस्लाम के लिये आवश्यक है। यदि अरब के लोग इस्लाम धर्म के उपासक नहीं हैं तो कौन हैं ? यह तो इसी के बराबर है मानों जर्मनी रोम कथालिकवालों की ओरसे रोम में एक मांग मांगता है और इटली वाले कुछ दूसरी मांग मांगते है। पर यदि थोड़ी देर के लिये मान भी लिया जाय कि भारतीय मुसलमानों का धर्म इस बातकी आवश्यकता समझता है कि अरबों पर तुर्को का शासन होना चाहिये, चाहे अरबवाले . उसका विरोध ही क्यों न करते हों तो आजकल के स्वतन्त्र युगमे इस तरह की मांग को धार्मिक मांग नहीं कह सकते क्योंकि इस युगमें किसी भी कारणवश एक आदमीका दूसरे आदमी पर लगातार दबाव नहीं चल सकता । प्रधान मन्त्रीने युद्धके आरम्भमें भारतीय मुसलमानोंको इस बातका अवश्य आश्वासन दिया