पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०२
खिलाफतकी समस्या


जायगा तो अन्य सभी काम बन्द हो जायंगे और सुधार भी बेकार हो जायंगे। पर इससे यह कहांसे झलकता है कि उन्नति- का प्रसार रुक जायगा बल्कि मेरी धारणा तो इससे एकदम विपरीत है। मैं अमहयोगको इतना बलिष्ठ अस्त्र समझता हूं कि यदि उसका प्रचार सतर्क होकर किया गया तो उससे जिस फलकी प्राप्ति होगी अन्य सभी फल उसके अनुगामी होंगे। उस समय लोगोंको अपने पूर्ण अधिकारका ज्ञान होगा। उस समय उन्हें संगठन, आत्मसंयम, सहयोग, अहिंसा आदि गुणोंकी उपयोगिता प्रतीत होगी जिसके द्वारा प्रत्येक राष्ट्र महान् और उत्तम हो सकते हैं ।

(९) मेरी समझमें मुझे कोई अधिकार नहीं है कि मैं मुसलमानोंसे उससे अधिक सदिच्छाकी आशा करू जितना कि मुझमें है। पर मैं इतना अच्छी तरहसे जानता हूँ कि मेरे अहिंसाके सिद्धान्तमें उनका विश्वास दृढ़ नहीं है। उनका कहना है कि अहिंसा दुर्बलोंका अस्त्र है और सिर्फ सुविधाके लिये इसका प्रयोग किया जा सकता है। उनका कहना है कि यदि हम इस समय कोई खुली कार्रवाई करना चाहें तो हमारे लिये । केवल अहिंसात्मक असहयोग खुला है। मैं जानता हूं कि मुसलमानों में कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें यदि सफलताकी पूर्ण आशा हो जाय तो हिंसा करनेके लिये तुरत तैयार हो सकते हैं पर उन्हें इस बातका पक्का विश्वास हो गया है कि हिंसासे हम लोगों की विजय नहीं हो सकती। इसलिये अहिंसा उनके लिये