पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४६

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बना डाले। पहला कानून तो आफिसियल सीक्रेट ऐक था और दूसरा युनिवर्सिटीज ऐक था। उससे प्रजा नितान्त असन्तुष्ट थी। माफीसियल सीक्रेट ऐकृ के अनुसार अधिकारियों की उच्छुकुलता एक-दम से बढ़ जाती थी और युनिवर्सिटीज ऐक के द्वारा शिक्षा का सारा अधिकार सरकार के हाथ में मो गया। यह तो था ही। इधर इस धधकती अग्निको और भी प्रज्वलित करने के लिये लार्ड कर्जन ने "बङ्गभङ्ग" की व्यवखा की अर्थात् बङ्गालको दो टुकड़ों में तोड़ डाला। इस दुर्घटना के बाद ही बम्बई में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। सर फिरोज शाह मेहता स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने जनता को विश्वास दिलाया कि ब्रिटन की बुद्धिमानी, उदारता, और नेक नियती निर्विवाद है। इसमें किसी तरह की आशङ्का नहीं करनी चाहिये। पर बङ्गाल का विश्वास एक.दम से हट गया था। उन्हें ब्रिटिश की उदारता, नेकनियती,और बुद्धिमानी पर भरोसा नहीं रह गया था, बल्कि उन्हें तो ब्रिटिश की दूरदर्शिता पर भी सन्देह होने लग गया था। बङ्गालके सभी नेता चाहे वे गरमदल के रहे हों यो नरमदल के देश को एक स्वरसं स्वावलम्बन की शिक्षा देनी प्रारम्भ की और ब्रिटिश मालके वहिष्कार की योजना की गई। १६०५ कांग्रेस का अधिवेशन बनारस में हुआ। उस काँग्रेस के सभापति स्वर्गाय गोखले थे। उस समय भारत की अबला अतीव चिन्ताजनक हो रही थी। अधिकारी वर्ग तथा जनता के बोच