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पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४६२

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खिलाफतकी समस्या


लोगो को पूरा भय है कि कहीं इस प्रश्नका निर्णय हम लोगोंकी इच्छाके प्रतिकूल न हो! यदि हम पंजाबको दुर्घटनाका कारण दिखाकर विजयोत्सव में भाग लेना अस्वीकार करें तो हमपर विचारहीन और अपरिपक्व होनेका दोष लगाया जायगा और सम्भव है कि इससे हम पञ्जाव और खिलाफत दोनों को क्षति पहुंचावें। खिलाफतका प्रश्न अत्यन्त विकट प्रश्न है और उसके लिये तुरत उपचार होना चाहिये। यदि हम लोग इस प्रश्न को उचित स्थान और उचित मूल्य देना चाहते हैं तो हमें उचित है कि हम इस प्रश्नको अन्य प्रश्नोंसे अलग रखें ।"

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प्रतिज्ञा भंग

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( मई १९, १९२० )

सेवरकी सन्धिमे तुओंके साथ जा शर्ते की गई हैं वे प्रकाशित हो गई। मेरे मतसे ये शर्ते सुप्रीम कौंसिल, ब्रिटिश प्रधानमन्त्री तथा ईसामसीह की उदार शिक्षा के सर्वथा प्रतिकूल हैं। गृहकलह तथा भीतर की अशान्ति से शक्तिहीन तुर्क इस उद्दण्डपूर्ण निर्णय को भले ही स्वीकार कर लें, भारतके मुसलमान भी चाहे डरके मारे कुछ न बोलें, हिन्दू लोग भी, डर, डाह