अथवा अदूरदर्शिता के कारण इस महान् संकट के समय चाहे अपने मुसलमान भाइयों का साथ न दें पर यह बात मोटे अक्षरों में लिख गई कि इङ्गलैण्ड के प्रधानमन्त्री ने जो वचन दिया था उसे दम्भ के साथ तोड़ा गया। राष्ट्रपति बिलसन की १४ शौकी
चर्चा करना यहाँ व्यर्थ है क्योंकि अब उनकी परवा कौन करता
है, उनकी चकाचौंध केवल दो दिनके लिये थी। पर दुःख तो
इस बातका है कि भारत सरकारने अपने सूचनापत्र में सन्धि की
शौकी सफाई पेश की है, उन्हें मिस्टर लायड जार्ज की प्रतिज्ञा-
का प्रतिरूप बतलाया है पर साथ ही साथ उन्हें सदोष प्रमाणित
करके मुसलमानों से प्रार्थना भी की है कि अब बिना किसी
तरह के असन्तोष के उन्हें इन शोंको स्वीकार कर लेना चाहिये ।
पर धोखे की टट्टी इतनी मोटी नहीं है कि वह असलियत को छिपा सके। यदि भारत सरकार ने अपने सूचनापत्र में उस तरहके
वचन देने के लिये मिस्टर लायड जार्ज को दोषी ठहराया होता तो
कदाचित कुछ मर्यादा बनी रह जाती। पर इस प्रकार वचन
भंग करने के बाद उसके पूरी होने की भी डींग मारना चित्तमें
विकार उत्पन्न कर देता है। बड़े लाटने अपने सूचनापत्रमें
लिखा है:--- "खिलाफत का प्रश्न मुसलमानों का प्रश्न है, इसमें उनको पूरी स्वतन्त्रता है और सरकार इसमे हस्तक्षेप नहीं करना
चाहती।" बड़े लाटके इस कथनका क्या अभिप्राय हो सकता
है जबकि खलीफाका राज्य अतीव निर्दयताके साथ छिन्न भिन्न
कर दिया गया है, मुसलमानोंके पवित्र तीर्थस्थानोंपरसे उनका
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प्रतिभा भंग