गई है। केवल कार्नवाल प्रदेशका क्षेत्रफल उससे बड़ा है । यदि तुर्काने जर्मनीका साथ न दिया होता तो आज पूर्वोय बाल्कन
प्रदेशकी कमसे कम ६० हजार वर्गमील भूमि उसे मिली होती।"
मुझे नहीं मालूम कि कानिकलके मतका प्रतिपादन किसी और
ने किया है। तुर्की साम्राज्यको इस तरह काटना, उसे दण्ड
देनेके लिये है अथवा न्यायके अनुसार यही उचित प्रतीत होता
है ? यदि तुर्को ने जर्मनीको साथ न दिया होता तो क्या मेसा-
पोटामिया, अरेबिया, आर्मेनिया, और पलस्टाइनके लिये राष्ट्री.
यताके सिद्धान्तकी उद्घोषणा की गई होती ?
मिस्टर काण्डलरने लिखा है कि मिस्टर लायड जार्ज भारतकी जनताके साथ इसलिये प्रतिज्ञावद्ध नहीं हुए थे कि रंगरूटोंकी भर्ती और उनका भेजा जाना जारी रहे। जो लोग इस मतसे सहमत हैं उनकी सेवामें मुझे मिस्टर लायड- जार्जके निम्नलिखित शब्दोंको उद्धृत कर देना उचित प्रतीत होता है। अपने कथनकी सफाई देते हुए मिस्टर लायड जार्जने कहा था:-
"मेरे इस कथनका प्रभाव यह पड़ा कि भारतवर्षमें रङ्ग-
कटाकी भर्तीका काम ज्योंका त्यों जारी रहा और उसमें अधिका-
धिक वृद्धि होने लगी। सभी रङ्गरूट मुसलमान ही नहीं थे पर
उनमें मुसलमान भी थे। अब यह कहा जाता है कि यह तुर्को.
के लिये वचन दिया गया था। पर तुर्कोने इसे स्वीकार नहीं
किया था। इससे हमारे ऊपर किसी तरहकी जिम्मेदारी नहीं