पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२२
खिलाफतकी समस्या

जिस अन्यायपूर्ण काममें ब्रिटिश साम्राज्य के प्रधान मन्त्री सहायक रहे हैं उसके प्रति अपनी घार अप्रसन्नता प्रगट करनेके लिये भारतीय मुसलमानोंके लिये तीन मार्ग खुले हैं।

(१) शस्त्र लेकर उठ खड़े होना।

(२) ब्रिटिश साम्राज्य छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जाना।

(३) सरकारके साथ असहयोग करके पापाचरणमें उसका साथी न होना।

आपको भली भांति विदित होगा कि एक समय यह था जयकि मुसलमानोंमें ऐसे विचारशून्योंका अभाव न था जो हिंसाके कट्टर पक्षपाती थे और आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो 'हिजारतके लिये तैयार हैं। मैं साहसके साथ कह सकता हूँ कि धीरे धीरे अपने मतका प्रभाव डालकर मैंने मुसलमानोंको हिंसासे अलग कर लिया है। पर मेरी यह सफलता केवल लाभकी दृष्टिसे हुई है न कि अहिंसाकी उपयोगिताका दृष्टीसे। पर जो कुछ हो इसका साम्प्रतिक परिणाम यह हुआ है कि हिंसा-की प्रवृत्ति मुसलमानों से सर्वथा जातो रही है। जो लोग हिजा-रतके पक्षपाती थे उनका जोश भी ठंढासा हुआ चला जा रहा है यद्यपि वह एकदमसे लुप्त नहीं हो गया है। मेरी निश्चित धारणा है कि दमनका अतिबलिष्ठ प्रयोग भी हिंसाकी प्रवृत्तिको रोकनेमें समर्थ नही हुआ होता यदि स्वयं जनताने ऐसे बलिष्ठ शस्त्रको सामने न रख दिया होता जिसमें त्यागसे सफलताकी सम्भावना हो अर्थात जितना ही अधिक त्याग किया जाय उतनी ही अधिक